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अनुच्छेद 370: लक्ष्य विकसित भारत @2047 के लिए सराहनीय पहल

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May 13, 2025

यह भारतीय संविधान का एक प्रावधान था। जो जम्मू-कश्मीर को एक विशेष राज्य का दर्जा देता था। इसके प्रावधान ऐसे थे कि भारतीय संविधान भी जम्मू कश्मीर में सीमित हो जाती था, जिससे देश की सरकारें राज्य के फैसले को लेकर हमेशा बंधी रहती थीं। इस अनुच्छेद को दिवंगत प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने पांच महीनों की बातचीत के बाद से संविधान में जोड़ा गया था। इसके लिए पहले साल 1951 में जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा का गठन किया गया। इसमें कुल 75 सदस्य थे। सभा को जम्मू और कश्मीर के संविधान का अलग मसौदा तैयार करने को कहा गया। जो नवंबर, 1956 पूरा हुआ और 26 जनवरी, 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया, इसके बाद जम्मू-कश्मीर संविधान सभा का अस्तित्व ख़त्म हो गया था। जिसके बाद कारण उत्पन्न हुए जो निम्नलिखित है:

  • इसके कारण अनुच्छेद 1 (भारत राज्यों का एक संघ है) के अलावा कोई अन्य अनुच्छेद जम्मू और कश्मीर पर लागू नहीं होता था।
  • इसके कारण जम्मू-कश्मीर का अपना एक अलग संविधान था।
  • इसी विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान का अनुच्छेद 356 लागू नहीं होता था। इस कारण भारत के राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्ख़ास्त करने का अधिकार नहीं था।
  • अनुच्छेद 370 के चलते, जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा होता था। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता था।
  • भारत के राष्ट्रपति अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू-कश्मीर में आर्थिक आपालकाल नहीं लगा सकते थे।
  • इसके कारण भारत के राष्ट्रपति के पास ज़रूरत पड़ने पर किसी भी बदलाव के साथ संविधान के किसी भी हिस्से को राज्य में लागू करने की ताक़त थी। हालाँकि इसके लिए राज्य सरकार की सहमति जरूरी थी। इसमें भी यह कहा गया था कि भारतीय संसद के पास केवल विदेश मामलों, रक्षा और संचार के संबंध में राज्य में क़ानून बनाने की शक्तियां हैं।
  • साथ ही इस अनुच्छेद में इस बात की भी शक्ति थी कि इसमें कैसे संशोधन किया जा सकता है। यह भी कहा गया कि राष्ट्रपति जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सहमति से ही संशोधन कर सकते हैं।

इसी को लेकर केंद्र सरकार काफ़ी लंबे समय से कश्मीर के भारत के राज्यों को एकजुट होने की दिशा में रोड़ा मान रही थी।

 

कानूनी बदलाव

इसके ख़त्म होने के साथ अनुच्छेद 35A भी खत्म हो गया है जिससे राज्य के ‘स्थायी निवासी’ की पहचान रहती थी। केंद्र सरकार ने इसके अंत के साथ-साथ राज्य के पुनर्गठन का भी प्रस्ताव पेश किया था। जिससे जम्मू-कश्मीर दो केंद्र शासित प्रदेशों में बंट चुका है। प्रथम जम्मू-कश्मीर और दूसरा लद्दाख। इन दोनों केंद्र शासित प्रदेशों का शासन अभी लेफ़्टिनेंट गवर्नर के हाथ में है। अनुच्छेद के हटने के कारण अब सरकार के पास कई कानूनी शक्तियां हैं।

बदलाव के बाद हुई स्थिति

  • इनके अलावा इसके हटने के कारण जम्मू कश्मीर की लड़कियां देश के किसी भी क्षेत्र के लड़के से विवाह कर सकती हैं और उनके जम्मू-कश्मीर से संबंध भी खत्म नहीं होंगे।
  • जम्मू-कश्मीर में सभी केंद्रीय कानून लागू हो गए। और इस तरह रणबीर दंड संहिता की जगह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) ने ले ली।

राजनीतिक विचारधारा

इस निर्णय ने राजनीतिक माहौल को पूरी तरह से बदल दिया है। देखा जाये तो, जहाँ पहले विधान सभा का कार्यकाल 06 वर्ष का होता था, वहीं अब उसे 05 साल कर दिया गया है। प्रदेश से विधान परिषद् को भी समाप्त कर दिया गया है। यहाँ की विधानसभा के क्षेत्रों में जम्मू (06) और कश्मीर (1) की बढोत्तरी के साथ में 90 सीटें हो गई है। पहली बार अनुसूचित जनजातियों के लिए 09 सीटें आरक्षित की गई है। वहीं लोकसभा में जम्मू कश्मीर अनुसूचित जनजाति आदेश संशोधन विधेयक 2030 को पारित कर दिया गया है। इसके तहत पहाड़ी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला है। इस सब को देखते हुए लोग विभिन्न दलों से अपनी स्थिति पर स्पष्टता चाहते हैं। कुछ मुख्यधारा के दलों ने अपना राजनीतिक प्रभाव काफी हद तक खो दिया है। वहीं नए दल और नेता उभर रहे हैं, जो बदलते राजनीतिक समीकरणों में अपनी भूमिका तलाश रहे हैं। जिला विकास परिषदों के चुनाव के साथ ही त्रिस्तरीय पंचायतीराज की शुरूआत हुई है। जिला पंचायत के चुनाव में 51.7% वोटिंग हुई। जिसमें पहली बार महिला आरक्षण लागू होने के बाद 100 महिलाएं चुनकर आईं। साथ ही पहली बार 280 जिला पंचायत सदस्य चुने गए और 20 जिलों में पहली बार जिलाध्यक्ष चुने गए। जिन्हें डिप्टी कमिश्नर के समान प्रोटोकॉल दिया गया है। लोगों की मांग को पूरा करते हुए कश्मीरी, डोगरी, उर्दू व हिंदी जैसी स्थानीय भाषाओं को भी आधिकारिक भाषाओं के रूप में जोड़ा गया है। जिससे जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को अधिक आवाज़ मिली है। 01 जून 2020-21 से, सरपंचों ने मनरेगा योजना के लिए भुगतान शुरू कर दिया है। जिसके परिणामस्वरूप उन्हें इस वर्ष लगभग 1000 करोड़ रुपये सौंपे जाएंगे।

सांस्कृतिक और सामाजिक एकीकरण

समाज में सकारात्मक बदलाव की नई सुबह शुरू हो चुकी है। अब सामाजिक भेदभाव का दौर ख़त्म होने के बाद वहां के लोग नई व्यवस्था में अपनी सामाजिक भूमिका के निर्वाह की तैयारी कर रहे हैं। बेहतर सामाजिक व्यवस्था बनाने के लिए प्रशासन को पारदर्शी बनाया जा रहा है। केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं के माध्यम से समाज के प्रत्येक व्यक्ति को मौके देकर सशक्त बनाया जा रहा है। पहले बहन-बेटियों के साथ भेदभाव हो रहा था। प्रदेश से बाहर विवाह होने की स्थिति में वे प्रदेश में संपति आदि के अधिकारों तक से वंचित हो जाती थीं। परन्तु अब ऐसा नहीं है, अधिकारी जन विकास के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए लोगों के बीच में जाते है। यह बेहतर सामाजिक व्यवस्था बनाने की दिशा में कार्यवाही का हिस्सा है। हिंसा की घटनाओं में गिरावट आई है। सांस्कृतिक रूप से, कश्मीरी विरासत और परंपराओं को बढ़ावा देने के प्रयास किए गए हैं। त्यौहारों, शिल्प और स्थानीय कला को बड़े मंचों पर प्रदर्शित किया जा रहा है, जिससे युवाओं में गर्व और पहचान की भावना पैदा हो रही है।

बेहतर आर्थिक विकास और निवेश

सरकार ने जम्मू-कश्मीर में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये कई पहलें लागू की हैं, जैसे प्रधानमंत्री विकास पैकेज (PMDP) और औद्योगिक विकास योजना (IDS)। इन पहलों से क्षेत्र में निवेश, रोज़गार सृजन और आर्थिक विकास में वृद्धि हुई है। केंद्रशासित प्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर में कर राजस्व में 31% की वृद्धि देखी गई।  यहाँ की GSDP स्थिर कीमतों पर 10% की दर से बढ़ी, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 7% रही। पहली बार जम्मू-कश्मीर में बेकार पड़े प्राकृतिक संसाधन और निष्क्रिय रहे मानव संसाधन का उभार हुआ है। इसका ताजा उदाहरण लैवेंडर की खेती डोडा जिले के एक छोटे से शहर भद्रवाह में शुरू हुई “बैंगनी क्रांति” है, जिसने भारत को कृषि-स्टार्टअप की एक नई शैली दी है। “बैंगनी क्रांति” भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण मूल्यवर्धन करेगी क्योंकि यह अगले कुछ वर्षों में तीसरे स्थान पर पहुंच जाएगी और फिर शीर्ष पर पहुंच जाएगी। 7वां वेतन आयोग 31 अक्टूबर, 2019 को जम्मू कश्मीर में तत्काल प्रभाव से लागू किया गया।

  • उन्नत अवसंरचना: सरकार ने जम्मू-कश्मीर में अवसंरचना क्षेत्र के विकास में भी भारी निवेश किया है। इसमें नई सड़कों, पुलों, सुरंगों, और बिजली लाइनों के निर्माण जैसी परियोजनाएँ शामिल हैं। इन सुधारों ने लोगों के लिये क्षेत्र में यात्रा करना और व्यापार करना आसान बना दिया है।
  • पर्यटन में वृद्धि: अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से जम्मू-कश्मीर आने वाले पर्यटकों की संख्या में व्यापक वृद्धि हुई है। पिछले दो वर्षों में करीब 2.5 करोड़ घरेलू और अंतरराष्ट्रीय पर्यटक कश्मीर आए हैं। अपने परिवार और प्रियजनों के साथ यहां आने वाले लोग ही प्रदेश में शांति की वापसी का सबूत हैं। श्रीनगर में जी-20 की सफल बैठकें भी इसका प्रमाण हैं। बेहतर सुरक्षा, बेहतर विपणन और नई पर्यटन पहलों की शुरूआत सहित विभिन्न कारकों के संयोजन से यह संभव हुआ है। कश्मीर घाटी में बॉलीवुड की वापसी की दिशा में सरकार ने नई फिल्म नीति का निर्माण किया है। जम्मू-कश्मीर फिल्म विकास परिषद् का गठन किया गया है। पिछले तीन साल में 400 से अधिक फिल्मों की शूटिंग की अनुमति दी गई है। श्रीनगर में मॉल समेत दक्षिणी व उत्तरी कश्मीर में सिनेमा हॉल खोले गए हैं।

शिक्षा पर प्रभाव

अगस्त 2021 में केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित करने के लिए लोकसभा में एक विधेयक में पारित किया गया। इसके बाद, केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 को ‘केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2021’ के रूप में संशोधित किया गया और इसमें ‘सिंधु केंद्रीय विश्वविद्यालय’ (एससीयू) की स्थापना शामिल की गई। यह  लद्दाख स्थित पहला केंद्रीय विश्वविद्यालय है, जिसका नाम ‘सिंधु नदी’ के नाम पर रखा गया है सिंधु केंद्रीय विश्वविद्यालय में छात्रों को स्नातक, स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट स्तर की पढ़ाई करने का मौका मिलेगा। ये पाठ्यक्रम छात्रों में सतत विकास से संबंधित क्षेत्रों में क्षमता निर्माण को सक्षम बनाएंगे। पाठ्यक्रम नई शिक्षा नीति 2020 के साथ सभी विषयों में लचीलेपन और गतिशीलता को सक्षम करेगा। मद्रास और कानपुर आईआईटी की देखरेख में विश्वविद्यालय नए शैक्षणिक कार्यक्रम लाएगा जो उच्च ऊंचाई वाली भौगोलिक मांगों के हिसाब से रोजगारपरक होंगे और साथ ही वैश्विक स्तर पर आगे के शोध के लिए अग्रणी होंगे। इस प्रकार विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान प्रणालियों से जुड़ा एक पाठ्यक्रम होगा जो इस क्षेत्र के लिए अद्वितीय होगा। इसके साथ ही जम्मू कश्मीर सिविल सर्विस कैडर का अगमुट कैडर में विलय कर दिया गया। जम्मू-कश्मीर में कुल 23,111 सरकारी स्कूलों के साइन बोर्ड का बैकग्राउंड तिरंगा बनाया गया और उसके ऊपर स्कूल के बारे में सारी जानकारी लिखी गयी। स्कूलों बच्चों में देश के राष्ट्रध्वज के प्रति सम्मान बढ़ाने की दृष्टि से ये फैसला किया गया।

वर्तमान में, केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में केवल एक विश्वविद्यालय है। केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ, दोनों विश्वविद्यालय एक-दूसरे के पूरक बनकर क्षेत्र में उच्च शिक्षा का नया मुकाम स्थापित करेंगे। प्रथम बार, जिला स्तर पर मेडिकल कॉलेज, हड्डी एवं अस्पताल;  संयुक्त और कैंसर अस्पताल बन रहे हैं। फूड क्राफ्ट इंस्टीट्यूट और बायो-टेक पार्क के अलावा आईआईटी और आईआईएम जैसे कई प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान स्थापित किए गए है। इसी के साथ-साथ पुस्तकालयों में इन्टरनेट व्यवस्था को पूर्ण रूप से बहाल कर दिया है। अब स्थानीय युवाओं को इंटरनेट का उपयोग करने के लिए लंबी कतारों में इंतजार नहीं करना पड़ता है। जम्मू-कश्मीर विद्यालय शिक्षा बोर्ड ने दसवीं कक्षा के राजनीति विज्ञान विषय के पाठ्यक्रम में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून, 2019 से जुड़ा एक अध्याय शुरू किया है। किताब (सामाजिक विज्ञान लोकतांत्रिक राजनीति-2) के अध्याय आठ के चौथे खंड में राज्य के पुनर्गठन से संबंधित अध्याय को शामिल किया गया है इसके हटने से पहले विद्यालय, कॉलेज, विश्वविद्यालय, इंडस्ट्रीज का बंद होना प्रत्येक दिन की बात थी। लेकिन आज स्कूल, कॉलेज हर दिन खुलते है। आज यहाँ के छात्र देश की मुख्यधारा से जुड़ते दिख रहे है।

सुरक्षा स्थिति में सुधार 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद, जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए कई कदम उठाए गए जैसे: सुरक्षा व्यवस्था को अलर्ट किया गया। सुरक्षा बलों को काफ़िले की आवाजाही से बचने का निर्देश दिया गया। उग्रवादी समूहों के ओवर-ग्राउंड वर्कर्स (OGWs) की गिरफ़्तारियां बढ़ाई गईं। आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में आतंकवादी घटनाओं की संख्या में 70% से अधिक की कमी आई है। कश्मीर घाटी में एक वक़्त पत्थरबाजी की घटना आम होती थी। आये दिन पत्थरबाजी की घटना से लोगो की मौत तक हो जाती थी। लेकिन धारा 370 ख़त्म होने के बाद इस घटना में निरंतर कमी देखने को मिली। जिन हाथों से पत्थर फेंके जाते थे, वे अब कंप्यूटर और आईपैड पकड़ रहे हैं ‘पत्थरबाजों के लिए कोई पासपोर्ट नहीं’ की व्यवस्था कर दी गयी है।

आगे की राह

  • इसके उत्थान के लिये 3E (शिक्षा, रोज़गार और नियोजनीयता) के लिये 10 साल की रणनीति लागू की जानी चाहिये।
  • जम्मू-कश्मीर में ‘शून्य-आतंकवादी घटना’ की योजना 2020 से लागू है और 2026 तक सफल होगी।
  • कश्मीर में वैधता के संकट के समाधान के लिये अहिंसा और शांति का गांधीवादी मार्ग अपनाया जाना चाहिये।
  • सरकार सभी कश्मीरियों तक एक व्यापक आउटरीच कार्यक्रम शुरू करके अनुच्छेद 370 पर कार्रवाई से उत्पन्न चुनौतियों को कम कर सकती है।
  • इस संदर्भ में कश्मीर समाधान के लिये अटल बिहारी वाजपेयी का कश्मीरियत, इंसानियत और जम्हूरियत (कश्मीर की समावेशी संस्कृति, मानवतावाद एवं लोकतंत्र) का संस्करण राज्य में सुलह की ताकतों की आधारशिला बनना चाहिये

निष्कर्ष

सर्वोच्च न्यायालय के हाल के निर्णय ने न केवल ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के सिद्धांतों को संपुष्ट किया है, बल्कि इसने सुशासन के लिये एकता एवं सामूहिक समर्पण के महत्त्व को भी सिद्ध किया है। इस निर्णय ने हमारे राष्ट्र के ताने-बाने को सुदृढ़ करने और एक समाज के रूप में हमें परिभाषित करने वाले मूल्यों को प्रबल करने में न्यायालय की प्रतिबद्धता को भी प्रकट किया है। निरस्तीकरण के पाँच साल बाद, कश्मीर प्रगति और लगातार चुनौतियों का एक मोज़ेक प्रस्तुत करता है। स्थिरता और समृद्धि की ओर क्षेत्र की यात्रा जारी है, जो आर्थिक विकास, सामाजिक सामंजस्य और राजनीतिक स्थिरता को बढ़ावा देने के प्रयासों द्वारा चिह्नित है। आने वाले वर्ष यह निर्धारित करने में महत्वपूर्ण होंगे कि ये परिवर्तन कैसे सामने आते हैं, और क्या कश्मीरी लोगों की शांति, सम्मान और विकास की आकांक्षाएँ पूरी तरह से साकार होंगी।

Authors: प्रवेन्द्र सिंह बिरला, पीएच.डी. शोधार्थी, बी. एड./एम. एड. विभाग (आईएएसई), महात्मा ज्योतिबा फुले रूहेलखंड विश्वविद्यालय, बरेली

 डॉ. क्षमा पाण्डेय, एसोसिएट प्रोफेसर, शोधार्थी, बी. एड./एम. एड. विभाग (आईएएसई), महात्मा ज्योतिबा फुले रूहेलखंड विश्वविद्यालय, बरेली  

 

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